
नई दिल्ली- महाभारत को हिन्दू धर्म का सबसे प्राचीन ग्रंथ माना जाता है। पांडवों और कौरवों की इस लड़ाई में बहुत सारी सीख मिलती है। साथ ही गीता के उपदेश हमें जीवन जीने का सलीका बताते हैं। महाभारत के कई पात्र ऐसे हैं कई वीर योद्धा ऐसे थे, जिन्होंने इस युद्ध में अपने प्राण गवां दिए। वहीं कुछ योद्धा ऐसे भी हैं जिन्हें माना जाता है कि वो अभी भी जिंदा हैं। आइए उनके बारे में आज हम आपको बताते हैं।
हनुमानजी

महाबलशाली और भक्तों के कृपालु हनुमानजी के कारण ही राम और रावण युद्ध में श्रीरामजी ने विजयश्री प्राप्त की थी। उनका प्रताप तो चारों युगों में है। वे त्रेतायुग में श्रीराम के समय भी थे और द्वापर में श्रीकृष्ण के समय भी थे। महाभारत के युद्ध में श्री हनुमानजी के कारण ही पांडवों को विजय मिली थी।
अर्जुन और श्रीकृष्ण को उन्होंने उनकी रक्षा का वचन दिया था तभी तो वे उनके रथ के ध्वज पर विराजमान हो गए थे। इससे पहले वे भीम का अभिमान को चूर चूर कर देते हैं जब एक जंगल में भीम उनसे अपनी पूंछ हटाने का कहता है तो हनुमानजी कहते हैं तू तो शक्तिशाली है तू ही मेरी पूंछ हटा दे। लेकिन भीम अपनी सारी शक्ति लगाकर भी जब वह पूंछ नहीं हटा पाता है तो वे समझ जाते हैं कि यह कोई साधारण वानर नहीं स्वयं हनुमानजी हैं।
महर्षि वेद व्यास

माना जाता है कि महर्षि वेद व्यास आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं। ये मत्सय कन्या सत्यवती के पुत्र थे। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर को महर्षि वेद व्यास का ही पुत्र माना जाता है।
इन्होंने ही वेदों के भाग किये थे। जिस कारण से इन्हें वेद व्यास के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि वेद व्यास कलयुग के अंत तक जीवित रहेंगे।
महर्षि परशुराम

वैसे परशुराम तो रामायण के काल के पहले से ही जीवित हैं। इनके पिता का नाम जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था। ऋचीक-सत्यवती के पुत्र जमदग्नि, जमदग्नि-रेणुका के पुत्र परशुराम थे। रामायण में परशुराम का उल्लेख तब मिलता है जब भगवान श्रीराम सीता स्वयंवर के मौके पर शिव का धनुष तोड़ देते हैं तब परशुराम यह देखने के लिए सभा में आते हैं कि आखिर यह धनुष किसने तोड़ा।
महाभारत में परशुराम का उल्लेख पहली बार तब मिलता है जब वे भीष्म पितामाह के गुरु बने थे। इसके अलावा वो कर्ण को भी शिक्षा देते हैं।
अश्वात्थामा

ये पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी तीसरी आंख नष्ट करके इन्हें 3 हजार साल तक सशरीर भटकने का श्राप दिया था। माना जाता है कि कलयुग के अंत में जब कल्कि अवतार होगा तो ये उनके साथ मिलकर अधर्म के खिलाफ लड़ेगा।
महर्षि दुर्वासा

दुर्वासा ऋषि अपने तेज क्रोध के लिए जाने जाते थे। इनके प्रसन्न करना बेहद कठिन काम था। महाभारत काल में कुंति ने इन्हें अपनी तपस्या से प्रसन्न किया था। माना जाता है कि महर्षि दुर्वासा को भी चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है।
जामवन्त

जामवंत त्रेतायुग में श्रीराम के साथ थे। जबकि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के ससुर बने। श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि के लिए जामवन्त से युद्ध करना पड़ा था। उस समय श्रीकृष्ण युद्ध जीत रहे थे तो जामवंत ने अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा। और फिर जामवंत की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को अपने राम रूप में आना पड़ा। तब जामवंत ने श्रीकृष्ण से माफी मांगी। और स्यमंतक मणि दे दी और उनसे आग्रह किया कि मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें। इन्हीं दोनों के पुत्र का नाम साम्ब था। जामवंत को अपने प्रभु राम से वरदान प्राप्त है। वो हमेशा चीरंजीवी रहेंगे।